राडार पर है उपचुनाव लड़ चुके कई नेता...
चुनाव से पहले आयकर विभाग की नजर, मांगा कमाई का ब्यौरा
भोपाल । अभी तक माना जाता था कि आम करदाता ही आयकर विभाग की जद में आते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। आयकर विभाग नेताओं पर भी अपनी नजरें गड़ाए बैठा है। जी हां, मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव-2018 के बाद 2020 में हुए उपचुनाव में भाग्य आजमा चुके प्रत्याशियों को आयकर विभाग ने अपने राडार पर लेते हुए धारा 131 के अंतर्गत नोटिस जारी किए हैं। ये नोटिस इन नेताओं के शपथ पत्र में दर्शाई संपत्ति और निवेश के स्त्रोत की जानकारी लेने के लिए आयकर विभाग की इन्वेस्टीगेशन विंग ने जारी किए हैं। जानकारी के मुताबिक आयकर विभाग के ग्वालियर रीजन के ग्वालियर, टीकमगढ़, छतरपुर, गुना, अशोकनगर, भिंड, दतिया, श्योपुर, शिवपुरी व मुरैना जिले के करीब 20 नेताओं को ऐसे नोटिस दिए गए हैं। खास बात यह है जिन नेताओं को इस तरह के नोटिस थमाए गए हैं उनमें प्रमुख पार्टियों भाजपा-कांग्रेस सहित निर्दलीय भी शामिल हैं। आयकर विभाग की इन्वेस्टीगेशन विंग की ओर से दिए गए नोटिस में नेताओं से पूछे गए सवालों में रोजमर्रा के खर्च की जानकारी, पत्नी के बैंक खाते की जानकारी, फिक्स्ड डिपॉजिट, चल-अचल संपत्ति, शेयरों में निवेश सहित आय के स्त्रोत आदि की जानकारी मांगी गई है। नेताओं की जानकारी के मिलान के बाद यदि इसमें अंतर आता है तो विभाग डिमांड निकालने के साथ-साथ एक कॉपी चुनाव आयोग को भी भेज सकता है।
ऐसे नोटिस में निकल सकती है टैक्स देय की मांग
सीए पंकज शर्मा ने बताया कि अगर आयकर की इन्वेस्टिगेशन विंग की ओर से धारा 131(1ए) के अंतर्गत नोटिस मिला है तो सतर्क होने की जरूरत है। हो सकता है कि जांच अधिकारी के पास ऐसी कोई जानकारी है, जिसे वो मिलान करना चाहता हो और आपको एक मौका देना चाहता हो कि आप संबंधित पूरी जानकारी उसे दे दें। ऐसे नोटिस को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। आयकर अधिकारी इसमें करदाता को व्यक्तिगत रूप से बुला कर जानना चाहता है। इस तरह के नोटिस में नियत तिथि और समय पर उपस्थित होना अनिवार्य होता है। यदि अधिकारी लिखित में नोटिस में ये लिखकर देता है कि उपस्थित होने की जरूरत नहीं है, केवल जानकारी भेज दें तब ही व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट मिलती है। जांच अधिकारी की ओर से करदाता से पूछताछ की जाती है और बयान कलमबद्ध किये जाते हैं। बयानों के बाद अगर जांच अधिकारी को लगता है कि केस असेसमेंट होने के लायक है और उनके पास साक्ष्य हैं कि करदाता की ओर से आय को छुपाया गया है तो फिर इसे वो संबंधित न्यायिक अधिकारी के पास भेज देता है, जो ऐसे केस का असेसमेंट करता है। इसमें एक-एक चीज की जांचकर सबूतों और जानकारी के आधार पर करदाता को बताकर अपना आर्डर जारी करता है जिसमें टैक्स देय की मांग की जाती है।