मध्यांचल पर भाजपा-कांग्रेस का फोकस
भोपाल। आसन्न विधानसभा चुनाव में मध्यभारत अंचल दोनों प्रमुख दलों के लिए कड़ी चुनौती पेश करने जा रहा है। भाजपा की ओर झुकाव रखने वाले इस अंचल में बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने होगी क्योंकि पिछले दो दशकों का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के बाद भी 2018 के विधानसभा चुनाव में वह यहां भाजपा की 33 सीटों के मुकाबले करीब आधी 17 सीटें ही ला सकी थी। कांग्रेस के लिए सिर्फ 2018 के प्रदर्शन को दोहराना काफी नहीं होगा। मजबूत स्थिति में बैठी भाजपा 2018 के कमजोर प्रदर्शन को याद भी नहीं करना चाहेगी। उसकी कोशिश 2003 के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को दोहराने की है जिससे अपने मजबूत इलाके में वह कांग्रेस को फिर दहाई के आंकड़े के नीचे रोक सके।
मध्यभारत अंचल की पहचान भाजपा के गढ़ के रूप में है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का पैतृक गांव जैत इसी क्षेत्र के सीहोर जिले में आता है तो विदिशा में उनकी राजनीति पुष्पित-पल्लवित हुई। ऐसे में सीहोर-विदिशा भाजपा की होम पिच है तो कुछ ऐसा ही मिजाज नर्मदापुरम और हरदा का भी है। सागर में भाजपा के भूपेंद्र सिंह,गोपाल भार्गव और गोविंद सिंह मोर्चा संभाले हुए हैं। मध्यभारत अंचल में भाजपा के सामने गढ़ बचाए रखने तो कांग्रेस के सामने सीटें बढ़ाने की चुनौती कांग्रेस वर्ष 2018 में भाजपा के मुकाबले करीब आधी सीटें ही जीत सकी थी
आंकड़े बताते हैं कि पिछले 20 सालों में कांग्रेस की सीटें भाजपा के मुकाबले आधी या उससे कम रही हैं। कांग्रेस ने 2018 में दो दशकों का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 17 सीटें हासिल कर लीं लेकिन डेढ़ साल के अंदर टूट के बाद उपचुनावों में अशोकनगर, रायसेन और सागर में एक-एक सीट गंवाने के बाद यह सफलता फीकी पड़ गई। भाजपा की बात करें तो 2003 से 2018 तक के विधानसभा चुनावों में 2003 में भाजपा का प्रदर्शन कांग्रेस को आठ सीटों पर समेट 34 सीटों के साथ सर्वश्रेष्ठ रहा था। इसके बाद भी सरकार भाजपा की रही लेकिन परिसीमन के बाद सीटों की संख्या बढऩे के बाद भी बंटवारे का फायदा भाजपा को 2003 की लहर जैसा नहीं मिल सका।