किसी ने कहा है कि अंधेरे में माचिस तलाशता हुआ हाथ, अंधेरे में होते हुए भी अंधेरे में नहीं होता, इस तलाश को अपने भीतर निरंतर जीवित रखना कोई साधारण बात नहीं है, परंतु जो लोग सफर की हदों को पहचानते हैं, जिन्हें हर मंजिल के बाद किसी नए सफर पर चल पड़ने की लत है, उनके भीतर से यह खोज कभी खत्म नहीं होती। अचूक शैली में, अपने क्रांतिकारी विचारों से लोगों को अपनी ही खोज के तौर तरीके बताने वाले राष्ट्रसंत मुनि तरुणसागर जी महाराज की वाणी सहज आकर्षण का विषय बन गई है। ऐसे समय में जब अपने हक में हर खुशी बटोर लेने की अदम्य लालसा लोगों को दुनिया के दुऱख दर्द से कोसों दूर ले जा रही है। मुनि श्री दुनिया को खुशी और गम की सही परिभाषा बता रहे हैं। यह सिर्फ संयोग नहीं है कि वे जहां भी पहुंचते हैं, सबसे पहले यही कहते हैं कि मैं कथा सुनाने नहीं जीवन की व्यथा सुनाने आया हूं। यह व्यथा घर-घर की कहानी है, जिसे एक बड़े आईने की शक्ल में सामने रखकर मुनि तरूण सागर जी पुकार कर कह उठते हैं कि इसे न तो ठुकराओ, न ही झुठलाने की कोशिश करो, बेहतर यही है कि इस व्यथा के बीच से ही जीवन का रस हासिल कर लो। मुनि तरुण सागर जी के बोल, सुनने वाले को भावित-प्रभावित तो करते ही हैं, उसे झकझोर कर भी रख देते हैं। उन्हें सुनते समय या पढ़ते समय आप अनुभव करते हैं कि आपकी अपनी जिंदगी एक धारावाहिक के रूप में आपकी आंखों के सामने तैरने लगी है। उनकी वाणी अतीत की जड़ता से उबारने और वर्तमान की लापरवाही के प्रति सचेत करने का काम करती है। वह आपके जख्मों को सहलाने के बदले यदि अधिक कुरदने की मुद्रा में दिख भी रही हो तो भी यह नहीं भूलना चाहिए कि मुनि श्री आपको स्थाई रूप से तंदुरूस्त बनाने का उद्यम कर रहे हैं। सूत्र शैली में संदेश देने वाले मुनि तरूण सागर जी को अपनी वाणी को कड़वे प्रवचन कहने पर इत्मीनान यदि है तो सिर्फ इसलिए कि वे जानते हैं, इंसान की प्रवृत्ति और कभी न बदलने की उसकी जिद इतनी कठिन और जटिल है कि सीधी उंगली से घी निकालना मुमकिन नहीं है। आज साहित्य, संस्कृति और समाज के हर मंच पर महिला जागृति या नारी विमर्श का दौर ही चल पड़ा है। मुनि तरूण सागर जी साफ शब्दों में कहते हैं कि समाज पुरुष प्रधान है, परंतु याद रखना चाहिए कि महिलाओं की भूमिका पुरुषों से भी बड़ी है। वे सत्य से मुंह मोड़ने या पीछे हटने वाले समाज को न सिर्फ जगाते हैं बल्कि अपने कड़वे बोल से कोसने में भी कोई गुरेज नहीं करते। सच के पाखंडी चेहरे को पहचानने वाली उनकी गहरी दृष्टि सजग करती हैं कि वास्तव में जो सत्य है उसे किसी बनावट की जरूरत नहीं है। संघर्ष में सत्य परेशान हो सकता है किन्तु पराजित नहीं होता। 
छोटी-छोटी बातों से जीवन का बड़ा अर्थ निकाल लेने वाले मुनि तरूणसागर जी के बोल सचमुच अनमोल हैं। एक और उदाहरण देखिए वे कहते हैं कि प्रभु को सात बातें अच्छी नहीं लगती घमंड से भरी आंखें, झूठ से भरी जुबान, बुराई की तरफ बढ़ते कदम, झूठी गवाही, बुरी सोच, भाई को भाई से लड़ाना और खून से सने हाथ। जरा सोचिए इन बातों में आज के मनुष्य और समाज का कौन सा ऐसा पक्ष है जो शेष होगा। इंसान का दोहरापन और दुनिया का बहुरूपियापन हो या हिंसा और आतंक की कीमत पर सब कुछ हासिल कर लेने की अंधी कोशिश, मुनि तरूण सागर जी इन हालातों को बेपरदा कर देते हैं। इसके विपरीत वे जीने की कला की सारी सूत्र भी सहज रूप से बता देते हैं। प्रदूषण के सारे खतरों में विचारों के प्रदूषण को सबसे बड़ा कहने वाले मुनि श्री इस समस्या को विचारों की शक्ति से ही दूर करने के रास्ते भी सुझाते हैं, आवश्यकता बस इतनी है कि सुने हुए को जीवन में उतारने की शक्ति श्रोता स्वयं अपने भीतर पैदा करें।