श्री कटासराज मंदिर की यात्रा पर जाएंगे 154 भारतीय तीर्थयात्री, पाकिस्तान ने जारी किया वीजा
नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग ने शुक्रवार को कहा कि उसने 154 भारतीय श्रद्धालुओं को श्री कटास राज मंदिर की यात्रा करने के लिए वीजा जारी किया है। यह मंदिर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है।
धार्मिक स्थलों की यात्रा पर 1974 के पाकिस्तान-भारत प्रोटोकाल के तहत हर वर्ष हजारों भारतीय तीर्थयात्री विभिन्न धार्मिक उत्सवों में भाग लेने के लिए पाकिस्तान जाते हैं।
154 श्रद्धालुओं को वीजा जारी किया गया है
पाकिस्तानी उच्चायोग ने कहा कि चकवाल जिले में स्थित पवित्र श्री कटास राज मंदिर की यात्रा के लिए 154 श्रद्धालुओं को वीजा जारी किया गया है। यह यात्रा 24 फरवरी से दो मार्च तक चलेगी। भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त साद अहमद वराइच ने तीर्थयात्रियों को शुभकामनाएं दीं।
एक बयान में कहा गया, उन्होंने पुष्टि की कि पाकिस्तान सरकार अंतरधार्मिक सद्भाव और आपसी समझ को बढ़ावा देने की अपनी नीति के अनुसार ऐसी यात्राओं की सुविधा देना जारी रखेगी।
कभी हिंदू बाहुल्य था पाकिस्तान स्थित श्री कटासराज मंदिर का क्षेत्र
बहुत कम लोग जानते होंगे कि विभाजन से पहले श्री कटासराज मंदिर के आसपास का क्षेत्र हिंदू बाहुल्य हुआ करता था। हालांकि विभाजन के बाद सभी हिंदू विस्थापित हो गए। यहां पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान, तक्षशिला के अलावा अफगानिस्तान के हिंदू आकर माथा टेकते थे। पितरों का तर्पण करते थे।
मंदिर का ज्ञात इतिहास करीब 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। यह मंदिर निमकोट पर्वत शृंखला में स्थित है और इसके रास्ते के चारों तरफ सेंधा नमक की खदानें हैं, जिसे भारत में व्रत के दौरान खाया जाता है और यहीं से आयात किया जाता है।
कटासराज में भगवान शिव का मंदिर है
कटासराज में भगवान शिव का मंदिर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां पार्वती जब सती हुईं तो भगवान शिव के आंखों से आंसू की दो बूंदें टपकी थी। एक कटासराज तो दूसरी पुष्कर में गिरी थी। इसी आंसू से यहां पवित्र अमृत कुंड का निर्माण हुआ था।
यहीं यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछे थे प्रश्न
यह भी मान्यता है कि वनवास के दौरान पांडवों ने इन्हीं पहाड़ियों में अज्ञातवास काटा था। यहीं पर युधिष्ठिर-यक्ष संवाद हुआ था। कटासराज शब्द की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि माता सती के पिता दक्ष ने भगवान शिव पर कटाक्ष किए थे। इसी कारण इस मंदिर को कटासराज का नाम मिला है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं करवाया था।