गुजरात के अहमदाबाद का विमान हादसा एक ऐसा दर्द दे गया, जो कभी न भूलने वाला है. इस हादसे में किसी ने अपने माता-पिता को खो दिया तो किसी ने अपने बेटे-बेटी को खो दिया. सभी शव पूरी तरह से जल चुके हैं. DNA सैंपल से इनकी पहचान हो रही है. हॉस्पिटल आए परिवारीजनों का एक ही दुख है कि वह अंतिम बार अपनों का चेहरा नहीं देख पाए. हादसे में कुल 241 लोगों की मौत हुई है. केवल एक भारतीय मूल के ब्रिटिश यात्री विश्वास कुमार रमेश की जान बच पाई है. सिविल अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है.

एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 के दर्दनाक हादसे ने दर्जनों परिवारों को उजाड़ दिया. इसी हादसे में नागपुर निवासी मनीष कामदार ने अपनी बेटी, उसकी सास और डेढ़ साल के नाती को खो दिया. अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में रोते-बिलखते मनीष ने मीडिया से बातचीत में अपना दर्द बयां किया और इमिग्रेशन अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए.

एक महीने पहले समधी की मौत, अब बेटी-सास और नाती

मनीष ने कहा कि विमान हादसे में मेरी बेटी यशा कामदार, उसकी सास रक्षा मोड़ा और नाती रुद्र मोड़ा तीनों नहीं रहे. उनका कहना है कि ये तीनों यूके जा रहे थे, जहां 22 जून को उनके समधी की प्रार्थना सभा होनी थी. अभी एक महीने पहले उनके समधी का निधन हो गया था. वह कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे. मनीष ने बताया कि उनकी बेटी यशा की शादी यूके में हुई थी. उसका परिवार कुछ समय के लिए भारत आया था.

TV पर देखी फ्लाइट के क्रैश होने की खबर

मनीष ने बताया कि जब उन्होंने टीवी पर फ्लाइट क्रैश की खबर देखी तो उन्हें इसकी जानकारी. मनीष ने बताया कि वह टीवी पर न्यूज चैनल लगाकर बैठे थे. तभी खबर आई कि एयर इंडिया का AI-171 क्रैश हो गया. उसी के बाद पहले तो मैं एयरपोर्ट गया, फिर वहां से अस्पताल आया.

इमिग्रेशन अधिकारियों पर लगाए गंभीर आरोप

मनीष का सबसे गंभीर आरोप इमिग्रेशन अधिकारियों पर है. उनका कहना है कि उनके नाती के पास ब्रिटिश पासपोर्ट था और उसे ‘एग्जिट क्लियरेंस’ नहीं मिल पा रहा था. उन्होंने हमें कहा कि आपने एंट्री नहीं की, इसलिए एग्जिट नहीं देंगे. फिर एक लाख रुपए यानी करीब 1000 पाउंड लिए और लास्ट मोमेंट पर उन्हें फ्लाइट में चढ़ाया गया. मनीष का दर्द यह था कि अगर इमिग्रेशन ने पैसे लेकर जबरदस्ती फ्लाइट में नहीं बैठाया होता तो शायद उनकी बेटी, सास और उसका बच्चा आज जिंदा होते. 

मनीष का यह कहना है कि तीनों को अंतिम क्षणों में जबरन फ्लाइट में चढ़ाया गया. अगर रोका गया होता तो शायद ये त्रासदी टल सकती थी. लिस्ट में भी आखिरी बोर्डिंग इन्हीं तीनों की थी. वहीं मनीष ने कहा कि अस्पताल में शवों की पहचान भी नहीं करवाई जा रही है. हमने कहा कि चेहरा दिखाओ, लेकिन जवाब मिला कि डीएनए टेस्ट के बाद ही दिखाएंगे. अभी तक शव परिजनों को नहीं सौंपे गए हैं. मनीष के बेटे ने डीएनए सैंपल दे दिया है.

32 साल की बेटी का चेहरा तक नहीं देख पाए

मनीष ने कहा कि वह अपनी 32 साल की बेटी का चेहरा नहीं देख पाए, डेढ़ साल के बच्चे की शक्ल नहीं देख पाए. क्या कहें, कैसे कहें? मनीष की इन बातों ने वहां मौजूद सभी को भावुक कर दिया.मनीष ने यह भी कहा कि इमिग्रेशन में जो करप्शन हुआ, उसने उनकी पूरी जिंदगी तबाह कर दी. वे चाहते हैं कि इस मामले की जांच हो और जिम्मेदारों पर कार्रवाई हो. यह हादसा केवल एक तकनीकी त्रासदी नहीं, बल्कि दर्जनों मानवीय कहानियों का सिलसिला है. कुछ टूटे सपनों का, कुछ अधूरे रिश्तों का और कुछ ऐसे दर्द का, जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है.