भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप लड्डू गोपाल की पूजा घर-घर में होती है. भक्तगण उन्हें बच्चे की तरह मानते हैं उन्हें जगाते हैं, नहलाते हैं, वस्त्र पहनाते हैं, भोजन कराते हैं और फिर सुलाते हैं. यह भाव, यह अपनापन, भक्ति का ऐसा स्वरूप है जो भक्त और भगवान के बीच विशेष संबंध बना देता है. लड्डू गोपाल की सेवा करते समय हर छोटी-बड़ी बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है, खासकर उनके स्नान के बाद बचे हुए जल के संबंध में.

स्नान कराने के बाद इस तरह करे जल का उपयोग
प्रेमानंद जी महाराज ने अपने एक सत्संग में इस विषय पर बहुत ही सरल और स्पष्ट मार्गदर्शन दिया है. जब किसी भक्त ने उनसे पूछा कि लड्डू गोपाल को स्नान कराने के बाद उस जल का क्या किया जाए, तो उन्होंने दो विकल्प सुझाए या तो उसे स्वयं पी लिया जाए या फिर तुलसी के पौधे में डाल दिया जाए. यह केवल परंपरा या रिवाज नहीं, बल्कि भाव का विषय है. भगवान के शरीर को स्पर्श करने वाला जल अब केवल पानी नहीं रह जाता, वह एक पवित्र द्रव्य बन जाता है. ऐसे में उसका सम्मानपूर्वक उपयोग करना ही भक्त का धर्म है.

जल को सही स्थान पर डाले
अगर घर में तुलसी का पौधा नहीं है तो यह जल किसी भी ऐसे स्थान पर नहीं डालना चाहिए जहां लोगों के पैर पड़ें. आप चाहें तो इसे एक पात्र में एकत्र कर लें और बाद में किसी पवित्र नदी जैसे गंगा या यमुना में अर्पित करें. अगर नदी तक जाना संभव न हो तो किसी सुरक्षित, शांत स्थान पर भूमि में एक गड्ढा खोदकर उसमें डाल सकते हैं.
प्रेमानंद जी महाराज ने यह भी बताया कि लड्डू गोपाल की सेवा में उपयोग किए जाने वाले फूलों का भी विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए. रोजाना जो फूल अर्पित किए जाते हैं, उन्हें कचरे में फेंकना अनुचित है. इन्हें भी किसी पेड़-पौधे के पास या नदी किनारे भूमि में दबा देना चाहिए. सिर्फ जल या फूल ही नहीं, भगवान के वस्त्र भी सावधानी से धोए जाने चाहिए. इन्हें किसी आम कपड़े की तरह नहीं बल्कि श्रद्धा के साथ साफ कर सुरक्षित रखना चाहिए.